Ek shahar chhota sa
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ना रूठो मैया,
हम कैसे जियेंगे ।
तुम्हारे पानी में उतरता था,
बचपन में जब हमारा पांव।
आखों में शरारत भर जाता था,
कौन हमें आपने गोद में खेलायगा।
ना रूठो मैया,
हम कैसे जियेंगे ।
ये तुम्हारे पानी की शक्ति थी
की अंजुरी में भरते ही
भक्ति आपने चरम पर होती थी ।
धुल गए पाप कौन विश्वास दिलायगा ।
ना रूठो मैया,
हम कैसे जियेंगे ।
निरेन
nirenchandra@ymail.com
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